दर्द की दास्ताँ सुनाने में।
देर कर दी क़रीब आने में।
हादसा था पलक झपकने का
मुद्दतें लग गई भुलाने में।
उसका कुछ दर्द कम हुआ शायद
क्या गया मेरा मुस्कुराने में।
यूँ न हैरान हो की ज़िंदा हूँ
देर लगती है जान जाने में।
कश्तियों की तमाम उम्र गई
ज़ोर लहरों का आज़माने में।
एक तस्वीर के सहारे भला
कौन जीता है अब ज़माने में।
जाने क्यूँ सबने साजिशें देखीं
उसके मस्ती भरे तराने में।
अब 'सजल' ढूँढ के रहेगा सहर
इस सियाह रात के .फसाने में।
Friday, June 5, 2009
अनभै सांचा में प्रकाशित
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namaskar mitr,
ReplyDeletemain bahut der se aapki gazalen padh raha hoon .. aap bahut accha lihte hai .. man ko chooti hui bhaavnaye shabd chitr ban jaate hai .. ye gazal mujhe bahut acchi lagi ..
badhai sweekar karen
dhanywad,
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
wah wah kya likhte ho, sab ko khush karte ho, asha hai aapka likhna zaari rahe, aur aise hi vichaar samaaj mein bhaari rahein....
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