फूल दिखला के मेरे ज़ख्म खिलाने वाले.
लौट के आ ऐ मुझे छोड़ के जाने वाले.
मुझ को दे देंगे सज़ा मौत की सौ बार, अगर
मेरी नज़रों से मुझे देखें ज़माने वाले.
मैं तो क़ैदी हूँ मुझे यूँ ही पड़ा रहने दे
बाँध के पंख मेरे मुझको उड़ाने वाले.
उनको मालूम नहीं कौन यहाँ रहता था
किसका घर फूँक के आये हैं जलाने वाले.
उसने पूछा जो कभी रोक न पाए खुद को
राज़ सब कह दिए जो जो थे छुपाने वाले.
हम तो ये सोच के बस उनका कहा मान गए
रूठ न जाएँ कहीं हमको मनाने वाले.
ये सदा अर्श के पर्दों को हिला सकती है
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाने वाले.
घर में यादों के 'सजल' दीप जला रखे हैं
देखे किस तरह भुलाते हैं भुलाने वाले.
मैं तो क़ैदी हूँ मुझे यूँ ही पड़ा रहने दे
ReplyDeleteबाँध के पंख मेरे मुझको उड़ाने वाले.
उनको मालूम नहीं कौन यहाँ रहता था
किसका घर फूँक के आये हैं जलाने वाले
bahut umda ghazal ,bahut khoob ,murass'a kalam hai ap ka
उनको मालूम नहीं कौन यहाँ रहता था
ReplyDeleteकिसका घर फूँक के आये हैं जलाने वाले
बहुत अच्छा कलाम है...ये शेर खास पसंद आया.
धन्यवाद इस्मत जी, शाहिद साहिब
ReplyDeleteसबसे पहले आपका शुक्रिया ...मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ...और फिर शुक्रिया कि उसी वजह से आपके ब्लॉग का पता मालूम हुआ ...
ReplyDeleteआपकी कई गज़ल पढ़ गयी हूँ ..अभी अभी ...एक से बढ़ कर एक हैं ...आपका यह खजाना जैसे नज़रों से बचा हुआ था ...
बहुत खूबसूरत गज़ल है ..कोई एक अशआर कैसे चुनु ? आभार
एक गुज़ारिश है ...
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
लौट के आ ऐ मुझे छोड़ के जाने वाले
ReplyDeleteयादों के दरीचों से ये सदा बार बार उठती ही रही
और ऐसे असरदार अलफ़ाज़ में ढलती रही
हर शेर अछा है
वाह !!
उसने पूछा जो कभी रोक न पाए खुद को
ReplyDeleteराज़ सब कह दिए जो जो थे छुपाने वाले.
हम तो ये सोच के बस उनका कहा मान गए
रूठ न जाएँ कहीं हमको मनाने वाले.....
उम्दा अशआर...उम्दा ग़ज़ल...
हार्दिक बधाई।
ब्लॉग पर आने के लिए आप सबका बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteजगमोहन राय
Its a beauty.
ReplyDelete