दिल में उठते हैं शरारे और भी।
इन हवाओं के सहारे और भी।
हैं कई तूफ़ान सागर में अभी
और सागर के किनारे और भी।
मौसमों के राज़ खुलने दे ज़रा
कर रही है रुत इशारे और भी।
पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
थे नदी में बहते धारे और भी।
जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
पास आते हम तुम्हारे और भी।
क्या हुआ जो चाँद फिर निकला नहीं
आसमाँ में हैं सितारे और भी।
इक अकेले तुम नहीं डूबे 'सजल'
कोई रह रह के पुकारे और भी।