आते आते यार समंदर.
लौट गया हर बार समंदर.
मैं सहरा हूँ मुझ में भी है
रेत का पानीदार समंदर.
तू क्या जाने क्या होती है
पानी की बौछार समंदर.
काश मुझे भी हासिल होतीं
बूंदें ये दो चार समंदर.
एक तलैया मेरे अन्दर
ढूँढ रही विस्तार समंदर.
एक लहर मुझको भी दे दे
मैं भी उतरूँ पार समंदर.
सारी दुनिया देख रही है
लहरों की तक़रार समंदर.
जीवन लेना जीवन देना
ये कैसा व्यापार समंदर.
पानीदार = चमकता हुआ
सारी दुनिया देख रही है
ReplyDeleteलहरों की तक़रार समंदर.
जीवन लेना जीवन देना
ये कैसा व्यापार समंदर
waah kya baat hai ,laazwaab rachna .
dhanyavaad jyoti ji
ReplyDeleteकाश मुझे भी हासिल होतीं
ReplyDeleteबूंदें ये दो चार समंदर.
सारी दुनिया देख रही है
लहरों की तक़रार समंदर.
बहुत सुंदर भाव ..एक एक शब्द गहरे अर्थ संप्रेषित करता है
तू क्या जाने क्या होती है
ReplyDeleteपानी की बौछार समंदर.
छोटी बहर की ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल
हर शेर उम्दा....एक से बढकर एक......
dhanyavaad Kewal ji and Varsha ji
ReplyDeleteDr. Jagmohan Rai
हर शेर प्यारा..दिल को छूने वाली ग़ज़ल. पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeletedhanyavaad kunwar ji
ReplyDeleteकाश मुझे भी हासिल होतीं
ReplyDeleteबूंदें ये दो चार समंदर.
एक तलैया मेरे अन्दर
ढूँढ रही विस्तार समंदर.
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल ..
नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
तू क्या जाने क्या होती है
ReplyDeleteपानी की बौछार समंदर.
bahut khoobsoorat ehsaasaat ko bayaan karta hua sher
जीवन लेना जीवन देना
ReplyDeleteये कैसा व्यापार समंदर...
bahut hi achhi rachna
आदरणीय जगमोहन राय जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत शानदार जानदार ग़ज़ल है …
मैं सहरा हूं मुझ में भी है
रेत का पानीदार समंदर
रेत से सीधा संबंद्ध होने के कारण यह शे'र अधिक भाया है , वरना हर शे'र कोट करने लायक है ।
आपकी पिछली पोस्ट्स पढ़ कर भी आनन्द आया …
नवरात्रि की शुभकामनाएं !
साथ ही…
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
एक लहर मुझको भी दे दे
ReplyDeleteमैं भी उतरूँ पार समंदर........bahut achchhi ghazal hai...wah!
Adarniye Guruji :
ReplyDeleteकाश मुझे भी हासिल होतीं
बूंदें ये दो चार समंदर.
Bahut Sundar.
Shukriya Ashutosh
ReplyDeleteक्या बात क्या बात क्या बात !!!!
ReplyDeleteदिवाली के दिन आपकी ये खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ के आनंद आ गया !!!!
दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये !!!!!!
काश मुझे भी हासिल होतीं
ReplyDeleteबूंदें ये दो चार समंदर.
सुन्दर!
shukriya Anupama ji
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