Thursday, July 23, 2009

अनभै सांचा के अंक १४ में प्रकाशित

दिल में उठते हैं शरारे और भी।

इन हवाओं के सहारे और भी।

हैं कई तूफ़ान सागर में अभी

और सागर के किनारे और भी।

मौसमों के राज़ खुलने दे ज़रा

कर रही है रुत इशारे और भी।

पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया

थे नदी में बहते धारे और भी।

जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ

पास आते हम तुम्हारे और भी।

क्या हुआ जो चाँद फिर निकला नहीं

आसमाँ में हैं सितारे और भी।

इक अकेले तुम नहीं डूबे 'सजल'

कोई रह रह के पुकारे और भी।

23 comments:

  1. मौसमों के राज़ खुलने दे ज़रा
    कर रही है रुत इशारे और भी।

    बहुत खूब....!!

    जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
    पास आते हम तुम्हारे और भी।

    लाजवाब......!!

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  2. Harkirat ji, Aruna ji,

    ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद। आते रहिएगा ।

    आपको ग़ज़लें पसंद आयीं मेरी खुशकिस्मती।

    Jagmohan Rai

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  3. बहुत शानदार. मैं आपके ब्लॉग को अपने ब्लॉग के साथ जोड़ रहा हूं...

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  4. शुक्रिया खान साहिब। comments देते रहियेगा।
    jagmohan

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  5. डाक्टर साहब,
    आप आये हमारे ब्लॉग पर, ये हमारी खुशनसीबी है, हमारा हौसला बढाया हम तो नत मस्तक हो गए, बस ऐसे ही आते रहिये और हमारी अच्छायाँ बुराइयाँ बताते रहिएगा ...
    आपकी ग़ज़ल बस लाजवाब बनी है लेकिन मुझे सबसे अच्छा शेर ये लगा...
    जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
    पास आते हम तुम्हारे और भी।

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  6. डाक्टर साहब,
    आप आये हमारे ब्लॉग पर, ये हमारी खुशनसीबी है, हमारा हौसला बढाया हम तो नत मस्तक हो गए, बस ऐसे ही आते रहिये और हमारी अच्छायाँ बुराइयाँ बताते रहिएगा ...
    आपकी ग़ज़ल बस लाजवाब बनी है लेकिन मुझे सबसे अच्छा शेर ये लगा...
    जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
    पास आते हम तुम्हारे और भी।
    mafi chahti hun yah ek doosre account se comment de diya tha maine...

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  7. लाजवाब ग़ज़ल कही है हुजूर...
    पढ़ के मजा आ गया...

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  8. शुक्रिया अदा जी, मनु जी, आपको ग़ज़लें पसंद आयीं, मेरा अहोभाग्य। शायद ब्लॉग्गिंग की दुनिया ही देश भर के संजीदा ग़ज़लें कहने, सुनने, गाने वालों को एक साथ लाये। ग़ज़लों पर चर्चा तथा आलोचनात्मक टिप्पनिआं भी ज़रूरी हैं। ब्लॉग पर आते रहिये। ईमेल से भी विचारों का आदान प्रदान हो सकता है।

    drjagmohanrai@gmail.com

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  9. पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
    थे नदी में बहते धारे और भी।


    खूबसूरत अंदाज़े बयां !!!
    Thanx for visiting my page

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  10. Excellent Sir...I m speechless.

    Sumit Chauhan,MERI

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  11. Aapke blog par aana achcha laga.Shubkamnayen.

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  12. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने!

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  13. science +computer+khubsoorat gazal
    maashaa allaah kayaa haseen itefaaq hai.
    jhalli-kalam-se
    angrezi-vichar.blogspot.com
    jhallevichar.blogspot.com

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  14. I went through all your gazals ,ireally enjoyed reading them.Thanks for coming to my blog .Please do comment on my spiritual journey.best wishes----

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  15. हैं कई तूफ़ान सागर में अभी
    और सागर के किनारे और भी।

    बेहद गहराई में डूबी हुई रचना है यह। ये ब्लॉग न होते, तो जाने हम आपको कहां पढ़ पाते जगमोहन जी। बहुत सुंदर।

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  16. Prem ji, Praveen ji Thanks. The world of blogging has given us an opportunity to know each other. Let's make the best use of it. THANKS

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  17. अति सुंदर Sir, New Poet Found.

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  18. डाक्टर साहब ,आप मेरे ब्लॉग पर आये और आर्शीवाद दिया उसके लिए शुक्रिया ,इसी प्रकार आपका आशीष चाहती हूँ |
    आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी
    पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
    थे नदी में बहते धारे और भी |
    इन पंक्तियों में जीवन का सारा सार दिखा दिया ,बहुत खूब -बधाई |

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  19. आपको ग़ज़ल पसंद आयी ज़हे नसीब। शीघ्र ही कुछ नई ग़ज़लें डालने वाला हूँ। आशा है आपको पसंद आएँगी।
    Jagmohan Rai

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  20. बेहतरीन... बहुत खूबसूरत... लाजवाब

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  21. milti nahin sabko nazar asi
    banti nahin har gazal asi

    tarkash se nikli hai ye kalam asi
    dil ke har tar ko chu jai ye vo gazal hai asi

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