Friday, June 19, 2009

अनभै सांचा में प्रकाशित

छोटी बहर की ग़ज़ल

ये सबा अजनबी।
ये फजा अजनबी।

दिल से निकली है
पर है सदा अजनबी।

मुझ को देखा कहीं

क्या बता अजनबी।

ज़िन्दगी है नई

फ़लसफा अजनबी।

आइनें में मुझे

मैं लगा अजनबी।

इस शहर में हर इक

हादसा अजनबी।

घर में अपने रहा

पर रहा अजनबी।

चाँदनी रात थी

चाँद था अजनबी।

एक पहचानी धुन

हमनवा अजनबी।

मेरे गीतों का हर

तर्जुमा अजनबी।

नाज़-नखरा वही

पर अदा अजनबी।

दिल में मौजों का इक

सिलसिला अजनबी।

मीत दे कर गया

इक सज़ा अजनबी।

बोल जायूँ कहाँ

हर दिशा अजनबी।

इस 'सजल' को मिली

हर दुआ अजनबी।






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