Saturday, June 13, 2009

सीप और बूँदें

नीलाम्बरा में प्रकाशित

बूँदें

सीप के

मुख में गिरकर

अक्सर मोती बन जाती हैं

और सीपें

अक्सर

प्यासी रह जाती हैं।

8 comments:

  1. जगमोहन जी
    आपने टिप्पडी कर मुझे प्रोत्साहित किया और आपको मेरी गजलें पसंद आई इसके लिए हार्दिक धन्यवाद
    ANBHAY SAANCHA को मैंने अभी पढ़ा नहीं है इस लिए मुझे बिलकुल नहीं पता की यह किस विषय पर आधारित पत्रिका है यदि इस विषय पर आप मार्ग दर्शन कर सकें तो अति कृपा होगी
    venuskesari@gmail.com

    कृपया अपने ब्लॉग पर समर्थक लिंक लगा दें
    वीनस केसरी

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  2. बेहद सुंदर जगमोहन जी। कम शब्दों में चित्र खींचना कोई आपसे सीखे। सच बताऊं, लंबी और ऊबाऊ कहानियां, कविताएं पढ़ पाना भारी हो जाता है। आजकल के कवि और कथाकार कविताएं और कहानियां रचते वक्त अक्सर शब्द सीमा में अपने विचारों को समेट नहीं पाते। पत्रकारिता में आने के बाद मुझेे कई कविताएं, कहानियां पढऩे का अवसर मिला, जो तब न मिलता अगर मैं इस क्षेत्र में ना होता। धीरे-धीरे समझ बढ़ी, लेकिन कम शब्दों में बांधने की कला का मै कायल हंू सरजी। आप वाकई शब्द चित्र खींचने में कामयाब हैं। कम शब्दों में बड़ा शब्द चित्र। शुक्रिया।

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  3. कल 31/10/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. सच ही कहा है.. मुमकिन है सीप का भी प्यासा रह जाना.लाजवाब अभिव्यक्ति

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  5. ये चंद दो पंक्तियाँ बहुत भारी पड़
    रही है सब पर... बहुत सुन्दर..
    ...आभार... आपका

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  6. मेरी नई पोस्ट के लिए पधारे..
    http//www.mknilu.blogspot.com

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