Tuesday, June 9, 2009

अनभै सांचा में प्रकाशित

क्या तेरे दिल में है बता साहिल।

रेत के ज़र्रे न उड़ा साहिल।

तेरे आगोश में समंदर है

और अब चाहता है क्या साहिल।

जाती लहरों को अलविदा कह दे

आती लहरों में डूब जा साहिल।

मुझ में भी कारवां है मौजों का

आ मुझे भी गले लगा साहिल।

सूखी झीलों में दरिया रहते हैं

छेड़ न इनको न जगा साहिल।

कश्तियाँ कैसे लौट पायेंगी

रुख बदलती नहीं हवा साहिल।

कितने दरिया 'सजल' गए आए

तूं न बदला वहीँ रहा साहिल.

8 comments:

  1. aagosh me samandar ka jwaab nahin
    waah waah
    bahut khoob !

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  2. स्वागत है।


    "तूं न बदला वहीँ रहा साहिल."
    अड़े रहिए और ग़ज़ल लिखते रहिए।

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  3. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत में आप का स्वागत है
    गार्गी

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  4. Welcome in the world of Blogging. A very nice gazhal.

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  5. Jisne jeeven jiya ho, wahee istraha likh sakta hai..aunubhavse nikle alfaaz hain!

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  6. Blog par aane ke liye aur saraahne ke liye dhanyavaad. koshish karoonga aur adhik aur acchi gazalen aap tak pahunchane ki.

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