दिल में उठते हैं शरारे और भी।
इन हवाओं के सहारे और भी।
हैं कई तूफ़ान सागर में अभी
और सागर के किनारे और भी।
मौसमों के राज़ खुलने दे ज़रा
कर रही है रुत इशारे और भी।
पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
थे नदी में बहते धारे और भी।
जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
पास आते हम तुम्हारे और भी।
क्या हुआ जो चाँद फिर निकला नहीं
आसमाँ में हैं सितारे और भी।
इक अकेले तुम नहीं डूबे 'सजल'
कोई रह रह के पुकारे और भी।
मौसमों के राज़ खुलने दे ज़रा
ReplyDeleteकर रही है रुत इशारे और भी।
बहुत खूब....!!
जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
पास आते हम तुम्हारे और भी।
लाजवाब......!!
waah bahut khoob......!
ReplyDeleteHarkirat ji, Aruna ji,
ReplyDeleteब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद। आते रहिएगा ।
आपको ग़ज़लें पसंद आयीं मेरी खुशकिस्मती।
Jagmohan Rai
बहुत शानदार. मैं आपके ब्लॉग को अपने ब्लॉग के साथ जोड़ रहा हूं...
ReplyDeleteशुक्रिया खान साहिब। comments देते रहियेगा।
ReplyDeletejagmohan
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteआप आये हमारे ब्लॉग पर, ये हमारी खुशनसीबी है, हमारा हौसला बढाया हम तो नत मस्तक हो गए, बस ऐसे ही आते रहिये और हमारी अच्छायाँ बुराइयाँ बताते रहिएगा ...
आपकी ग़ज़ल बस लाजवाब बनी है लेकिन मुझे सबसे अच्छा शेर ये लगा...
जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
पास आते हम तुम्हारे और भी।
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteआप आये हमारे ब्लॉग पर, ये हमारी खुशनसीबी है, हमारा हौसला बढाया हम तो नत मस्तक हो गए, बस ऐसे ही आते रहिये और हमारी अच्छायाँ बुराइयाँ बताते रहिएगा ...
आपकी ग़ज़ल बस लाजवाब बनी है लेकिन मुझे सबसे अच्छा शेर ये लगा...
जो कड़कती और थोडी बिजलियाँ
पास आते हम तुम्हारे और भी।
mafi chahti hun yah ek doosre account se comment de diya tha maine...
लाजवाब ग़ज़ल कही है हुजूर...
ReplyDeleteपढ़ के मजा आ गया...
शुक्रिया अदा जी, मनु जी, आपको ग़ज़लें पसंद आयीं, मेरा अहोभाग्य। शायद ब्लॉग्गिंग की दुनिया ही देश भर के संजीदा ग़ज़लें कहने, सुनने, गाने वालों को एक साथ लाये। ग़ज़लों पर चर्चा तथा आलोचनात्मक टिप्पनिआं भी ज़रूरी हैं। ब्लॉग पर आते रहिये। ईमेल से भी विचारों का आदान प्रदान हो सकता है।
ReplyDeletedrjagmohanrai@gmail.com
पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
ReplyDeleteथे नदी में बहते धारे और भी।
खूबसूरत अंदाज़े बयां !!!
Thanx for visiting my page
Excellent Sir...I m speechless.
ReplyDeleteSumit Chauhan,MERI
Aapke blog par aana achcha laga.Shubkamnayen.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने!
science +computer+khubsoorat gazal
ReplyDeletemaashaa allaah kayaa haseen itefaaq hai.
jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot.com
I went through all your gazals ,ireally enjoyed reading them.Thanks for coming to my blog .Please do comment on my spiritual journey.best wishes----
ReplyDeleteहैं कई तूफ़ान सागर में अभी
ReplyDeleteऔर सागर के किनारे और भी।
बेहद गहराई में डूबी हुई रचना है यह। ये ब्लॉग न होते, तो जाने हम आपको कहां पढ़ पाते जगमोहन जी। बहुत सुंदर।
Prem ji, Praveen ji Thanks. The world of blogging has given us an opportunity to know each other. Let's make the best use of it. THANKS
ReplyDeleteअति सुंदर Sir, New Poet Found.
ReplyDeleteडाक्टर साहब ,आप मेरे ब्लॉग पर आये और आर्शीवाद दिया उसके लिए शुक्रिया ,इसी प्रकार आपका आशीष चाहती हूँ |
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी
पत्थरों से मैं ही क्यूँ टकरा गया
थे नदी में बहते धारे और भी |
इन पंक्तियों में जीवन का सारा सार दिखा दिया ,बहुत खूब -बधाई |
आपको ग़ज़ल पसंद आयी ज़हे नसीब। शीघ्र ही कुछ नई ग़ज़लें डालने वाला हूँ। आशा है आपको पसंद आएँगी।
ReplyDeleteJagmohan Rai
wah
ReplyDeleteबेहतरीन... बहुत खूबसूरत... लाजवाब
ReplyDeletemilti nahin sabko nazar asi
ReplyDeletebanti nahin har gazal asi
tarkash se nikli hai ye kalam asi
dil ke har tar ko chu jai ye vo gazal hai asi