दर्द की दास्ताँ सुनाने में।
देर कर दी क़रीब आने में।
हादसा था पलक झपकने का
मुद्दतें लग गईं भुलाने में।
उसका कुछ दर्द कम हुआ शायद
क्या गया मेरा मुस्कुराने में।
यूं न हैरान हो की ज़िंदा हूँ
वक़्त लगता है जान जाने में।
एक तस्वीर के सहारे भला
कौन जीता है इस ज़माने में।
कश्तियों की तमाम उम्र गयी
ज़ोर लहरों का आज़माने में।
रास आयी न जब चमन की फ़ज़ा
लौट आया वो क़ैदखाने में।
जाने किस-किस ने साज़िशें देखीं
एक मस्ती भरे तराने में।
आंधियों में बिखर न जाएँ शजर
इन हवाओं से सुर मिलाने में।
अब 'सजल' ढूंढ के रहेगा सहर
इस सियाह रात के फ़साने में।
देर कर दी क़रीब आने में।
हादसा था पलक झपकने का
मुद्दतें लग गईं भुलाने में।
उसका कुछ दर्द कम हुआ शायद
क्या गया मेरा मुस्कुराने में।
यूं न हैरान हो की ज़िंदा हूँ
वक़्त लगता है जान जाने में।
एक तस्वीर के सहारे भला
कौन जीता है इस ज़माने में।
कश्तियों की तमाम उम्र गयी
ज़ोर लहरों का आज़माने में।
रास आयी न जब चमन की फ़ज़ा
लौट आया वो क़ैदखाने में।
जाने किस-किस ने साज़िशें देखीं
एक मस्ती भरे तराने में।
आंधियों में बिखर न जाएँ शजर
इन हवाओं से सुर मिलाने में।
अब 'सजल' ढूंढ के रहेगा सहर
इस सियाह रात के फ़साने में।
उसका कुछ दर्द कम हुआ शायद
ReplyDeleteक्या गया मेरा मुस्कुराने में।
वाह!